रिपोर्ट_प्रभ जोत सिंह जिला ब्यूरो चीफ
इंडेविन टाइम्स न्यूज नेटवर्क
सिख समाज के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी का शहीदी दिवस इसी महीने में मनाया जाता है. 24 दिसंबर सिख समाज के लोग इसे शहीदी दिवस के रूप में मनाते हैं. सिख समाज में इस दिन का विशेष महत्व होता है. गुरु गोविंद सिंह ने अपने बच्चों की कुर्बानी इसी हफ्ते अपने देश और धर्म के लिए दे दी थी.25 दिसंबर का दिन जहां लोग क्रिसमस धूमधाम से मनाते हैं वहीं सिख समाज के लोग इससे पूर्व दिवस को या यूं कहें इस पूरे सप्ताह को शहीदी के रूप में मनाते हैं. विशेष रुप से सिख समाज के लिए यह महीना और यह हफ्ता खास महत्व रखता है.
देश और धर्म के लिए गुरु गोविंद सिंह ने दे दी थी पूरे परिवार की कुर्बानी
सिख समाज के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी का शहीदी दिवस इसी महीने में मनाया जाता है. 24 दिसंबर सिख समाज के लोग इसे शहीदी दिवस के रूप में मनाते हैं. सिख समाज में इस दिन का विशेष महत्व होता है. गुरु गोविंद सिंह ने अपने बच्चों की कुर्बानी इसी हफ्ते अपने देश और धर्म के लिए दे दी थी.
ये है कहानी
बता दें कि औरंगजेब ने गुरु गोविंद सिंह जी के समय में उनसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए कहा. उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद इस्लाम धर्म धारण नहीं किया और तमाम जुल्मों का पूरी दृढ़ता से सामना किया.
20 दिसंबर : मुगलों ने अचानक आनंदपुर साहिब के किले पर हमला कर दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों से लड़ना चाहते थे, लेकिन अन्य सिखों ने उन्हें वहां से चलने के लिए कहा। इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह के परिवार सहित अन्य सिखों ने आनंदपुर साहिब के किले को छोड़ दिया और वहां से निकल पड़े।
21 दिसंबर : जब सभी लोग सरसा नदी को पार कर रहे थे तो पानी का बहाव इतना तेज हो गया कि पूरा परिवार बिछड़ गया। बिछड़ने के बाद गुरु गोबिंद सिंह व दो बड़े साहिबजादे बाबा अजित सिंह व बाबा जुझार सिंह चमकौर पहुंच गए। वहीं, माता गुजरी, दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह और गुरु साहिब के सेवक रहे गंगू गुरु साहिब व अन्य सिखों से अलग हो गए। इसके बाद गंगू इन सभी को अपने घर ले गया लेकिन उसने सरहंद के नवाज वजीर खान को जानकारी दे दी जिसके बाद वजीर खान माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को कैद कर लिया।
22 दिसंबर : इस दिन चमकौर की लड़ाई हुई जिसमें सिख और मुगलों की सेना आमने-सामने थी। मुगल बड़ी संख्या में थे लेकिन सिख कुछ ही थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों में हौंसला भरा और युद्ध में डटकर सामना करने को कहा। इसके बाद सिखों ने मुगलों से लोहा लिया और उन्हें नाको चने चबवाए।
23 दिसंबर : यह युद्ध अगले दिन भी चलता रहा। युद्ध में सिखों को शहीद होता देखा दोनों बड़े साहिबजादों बाबा अजित सिंह व बाबा जुझार सिंह ने एक-एक कर युद्ध में जाने की अनुमति गुरु साहिब से मांगी। गुरु साहिब ने उन्हें अनुमति दी और उन्होंने एक के बाद एक मुगल को मौत के घाट उतारना शुरू किया। इसके बाद वह दोनों भी शहीद हो गए।
24 दिसंबर : गुरु गोबिंद सिंह जी भी इस युद्ध में उतरना चाहते थे लेकिन अन्य सिखों ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए गुरु साहिब जो युद्ध में उतरने से रोक दिया और उन्हें वहां से जाने को कहा। मजबूरन गुरु साहिब को वहां से निकलना पड़ा। इसके बाद वह सिख मैदान में लड़ते हुए शहीद हो गए।
25 दिसंबर : यहां से निकलने के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी एक गांव में पहुंचे जहां उन्हें बीबी हरशरन कौर मिलीं जो गुरु साहिब को आदर्श मानती थीं। उन्हें जब युद्ध में शहीद हुए सिखों व साहिबजादों की जानकारी मिली तो वह चुपके से चमकौर पहुंचीं और शहीदों का अंतिम संस्कार करना शुरू किया जबकि मुगल यह नहीं चाहते थे। वह चाहते थे कि चील-गिद्द इन्हें खाएं। जैसे ही मुगल सैनिकों ने बीबी हरशरन कौर को देखा, उन्हें भी आग के हवाले कर दिया और वह भी शहीद हो गईं।
26 दिसंबर : सरहंद के नवाज वजीर खान ने माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह को ठंडा बुर्ज में खुले आसमान के नीचे कैद कर दिया। वजीर खान ने दोनों छोटे साहिबजादों को अपनी कचहरी में बुलाया और डरा-धमकाकर उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन दोनों साहिबजादों ने ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ के जयकारे लगाते हुए धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया। वजीर खान ने फिर धमकी देते हुए कहा कि कल तक या तो धर्म परिवर्तन करो या मरने के लिए तैयार रहो।
मोती राम मेहरा जिन्हें सरहिंद के नवाब द्वारा हिंदू कैदियों को भोजन कराने के लिए नियुक्त किया गया था, उन्हें जब माता जी तथा साहिबजादों के ठंडे बुर्ज में कैद होने की खबर मिली तो वह कोरे बर्तन में गर्म दूध भरकर ठंडे बुर्ज में पहुंच गया। उन्हें पता था कि बुर्ज के पहरेदार गर्म दूध का बर्तन किसी भी सूरत में बुर्ज के अंदर नहीं पहुंचने देंगे, इसलिए वह जाते समय पहरेदारों को रिश्वत देने के लिए अपनी पत्नी तथा मा के जेवर तथा कुछ पैसे साथ ले गया। मोती राम मेहरा लगातार तीन रात तक पहरेदारों को रिश्वत देकर माता जी तथा साहिबजादों को गर्म दूध पिलाने के लिए ठंडे बुर्ज में जाते रहे। बाद में जब नवाब को इस बात की जानकारी मिली तो उसने हुक्म जारी करके मोती राम मेहरा तथा उसकी वृद्ध मा, पत्नी व इकलौते पुत्र को कोहलू में डालकर कर शहीद कर दिया।
27 दिसंबर : ठंडे बुर्ज में कैद माता गुजरी ने दोनों साहिबजादों को बेहद प्यार से तैयार करके दोबारा से वजीर खान ने उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन छोटे साहिबजादों ने मना कर दिया और फिर से जयकारे लगाने लगे। यह सुन वजीर खान तिलमिला उठा और दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने का हुक्म दे दिया और साहिबजादों को शहीद कर दिया। यह खबर जैसे ही माता दादी माता गुजरी के पास पहुंची, उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए।
जिसके बाद 28 दिसंबर को उनका संस्कार हुआ जिसमे साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने के बाद बेरहमी से शहीद करके माता गुजरी जी के पार्थिव शरीर सहित मौजूदा गुरुद्वारा फतहगढ़ साहिब के पीछे जंगल में रखा गया। इसी क्षेत्र के धनी तथा मुगल दरबार के कर्मचारी दीवान टोडरमल ने नवाब से पार्थिव शरीर लेकर उनका अंतिम संस्कार करने की अनुमति मागी। इस पर नवाब द्वारा रखी शर्त के अनुसार संस्कार के लिए स्वर्ण मोहरें बिछा कर भूमि प्राप्त की। गुरु परिवार के प्रति इस वफादारी के बदले बाद में नवाब सरहिंद ने दीवान टोडरमल की हवेली तथा उनकी शेष संपत्ति नष्ट करवा दी।इतिहास की सबसे महंगी जमीन यही थी जिसे सेठ दीवान टोडर मल ने इस स्थान को 78000 सोने की सिक्के को जमीन पर बिछाकर उस जगह को मुस्लिम बादशाह से खरीदी थी।
- मुस्लिम बादशाह से खरीदी गई जमीन की कीमतसोने की मोहरे के अनुसार इस 4 स्क्वायर मीटर धरती की कीमत 2500000000 (दो अरब पचास करोड़) कहलाती है।
- आज तक के रिकॉर्ड में इतनी महंगी धरती कहीं नहीं खरीदी गई है!