गाजियाबाद
देशभर के युवाओं को रेलवे में नौकरी के नाम पर कैसे धोखा दिया गया सामने आया है। गैंग पिछले 10 सालों में करीब 300 लोगों से करोड़ों रुपये की ठगी कर चुका है। गैंग की प्लानिंग इतनी पर्फेक्ट थी कि किसी को शक होने का सवाल ही नहीं था। रेलवा का फर्जी फॉर्म, फर्जी मेडिकल लेटर, फर्जी अपॉइंटमें लेटर यहां तक कि फर्जी ट्रेनिंग तक दिलवाई जाती।
पुलिस ने गैंग से जुड़े दो लोगों को ट्रॉनिका सिटी से पकड़ा है। उन्होंने सब बताया। दोनों ने बताया कि गैंग की तरफ से विभिन्न जॉब वेबसाइट पर विज्ञापन डाला जाता था। विज्ञापन देखने के बाद बड़ी संख्या में जॉब तलाश रहे युवा उनसे संपर्क करते थे। संपर्क करने वालों को गैंग रेलवे का एक फॉर्म भेजता था। 2-3 दिन बाद गैंग का एक सदस्य एक-एक शख्स से मिलकर फॉर्म भरवाने के नाम पर 5 हजार रुपये जमा कराता था। जॉब की चाहत रखने वालों को कोई शक न हो इसके लिए गिरोह इन्हें दिल्ली के बड़ौदा हाउस स्थित उत्तर रेलवे के हेडक्वॉर्टर के पास बुलाया जाता था। यहां ऑफिस के बाहर गैंग के कुछ लोग खड़े रहते थे और खुद को रेलवे स्टाफ बताकर उनके फॉर्म जमा कर लेते थे और डिटेल एक रजिस्टर में लिखते थे। इसके बाद आगे की प्रक्रिया कराने के नाम पर 1 कैंडिडेट से 8-10 लाख रुपये मांगे जाते थे।
बिल्कुल असली जैसे कागज
गिरोह इतनी सतर्कता से काम करता था कि इन पर शक करना बहुत मुश्किल होता था। ये लोग रेलवे का फर्जी लेटरहेड, फॉर्म, ट्रेनिंग लेटर, मेडिकल लेडर और फर्जी अपॉइंटमेंट लेटर तैयार करते थे। ये बिल्कुल असली लगते थे। यही नहीं जॉब के लिए इनकी तरफ से एक वेरिफिकेशन फॉर्म भेजा जाता था, जिसे गजेटेड रैंक के अफसर से अटेस्ट कराने को कहा जाता था। ये फर्जी फॉर्म इतनी सावधानी से बनाया जाता था कि अफसर भी इसे पकड़ नहीं पाते थे और साइन कर देते थे। एसपी देहात का कहना है कि इस मामले में नॉर्दर्न रेलवे के अधिकारियों से बात की जाएगी और चेक किया जाएगा कि कहीं विभाग का कोई कर्मी भी तो गिरोह से नहीं मिला है।
अस्पताल में भी रहते गैंग से लोग
लोगों को विश्वास दिलाने के लिए गैंग की तरफ से लोगों को रेलवे के लेटरहेड पर मेडिकल लेटर भेजा जाता था। इसमें रेलवे के विभिन्न अस्पतालों के एड्रेस होते थे। यह मिलने के बाद उन्हें एक नंबर देकर किसी एक अस्पताल भेजा जाता था। वहां सुनसान स्थान पर गैंग का ही सदस्य खुद को डॉक्टर बता जॉब के लिए आए लोगों का मेडिकल करता था। इसके बाद कैंडिडेट्स को ट्रेनिंग का लेटर इशू किया जाता था।
ट्रेनिंग के लिए नॉर्दर्न रेलवे के अलग-अलग स्टेशनों पर भेजा जाता था। इन स्टेशनों पर गैंग के कुछ सदस्य पहले से मौजूद रहते थे और खुद को रेलवे अफसर बताकर उनको फर्जी ट्रेनिंग देते थे। ट्रेनिंग में रेलवे का इतिहास, मौजूदा स्थिति सब बताया जाता। अब पुलिस दिल्ली, गाजियाबाद, बेंगलुरु और चेन्नै में चलाए जा रहे ऐसे फर्जी सेंटर्स का पता करेगी।
फर्जी ट्रेनिंग पूरी होने के बाद गिरोह डाक के जरिए अपॉइंटमेंट लेटर भेजता था। यहां तक की प्रक्रिया में सारे पैसे वसूल लिए जाते थे। अपॉइंटमेंट लेटर में 1-2 महीने बाद जॉइन करने की बात कही जाती थी, जब कैंडिडेट्स वहां जाते थे तो ठगी का पता चलता था।
पुलिस के मुताबिक, एक शख्स से बात के लिए एक ही नंबर का इस्तेमाल होता था। ठगी पूरी होने पर नंबर बंद कर दिया जाता। पकड़े गए लोगों के मुताबिक, गैंग का सरगना हितेश नाम का शख्स है। वह नागपुर में रहता है। पिछले 10 सालों में उसने करीब 300 लोगों को ठगा, जिससे 5 से 8 करोड़ रुपये की कमाई हुई। असिस्टेंट स्टेशन मास्टर के लिए 20 लाख रुपये, टिकिट कलेक्टन के लिए 15 लाख, ग्रुप सी और डी के लिए 10 लाख रुपये लिए जाते थे। पुलिस को एक किताब भी मिली है। जिसमें फंसाए गए 330 लोगों के नाम हैं।
इन लोगों का गैंग देशभर में सक्रिय था। यह बात इससे साफ होती है कि ठगे गए 60 प्रतिशत लोग कर्नाटक, तमिल नाडु, केरल और आंध्र प्रदेश से थे।