कवयित्री- निभा सिंह चौधरी (आगरा)
कोई बस्ते के बोझ से पीड़ित ,
मैंने बस्ते को दूर से देखा है ,
मुझे दिखी नहीं है आजादी ,
बस्ते में बैठा लालच देखा है |
देश हुआ आजाद यहाँ ,
शिक्षा पर बच्चों का अधिकार बताते हैं ,
चिमनियों के नीचे बालसभायें ,
बच्चों के हाथ में भट्टे की ईंटें पकड़ाते हैं |
बचपन बैठा लाचार यहाँ ,
मैंने खुद को खुद से लड़ते देखा है |
कोई बस्ते के बोझ से पीड़ित ,
मैंने बस्ते को दूर से देखा है ,
मुझे मिली नहीं है आजादी ,
बस्ते में लालच बैठा देखा है |
नेहरू गाँधी अम्बेडकर में ही ,
कैसे पूरा शिक्षा धर्म समाहित है ,
दिशाहीन पथ पर चलने मैं ,
शिक्षित वर्ग यहाँ उत्साहित है |
बेरोजगार हुए सब पढे लिखे ,
नौकर पेशों को ये रोना रोते देखा है |
कोई बस्ते के बोझ से पीड़ित ,
मैंने बस्ते को दूर से देखा है ,
मुझे मिली नहीं है आजादी ,
बस्ते में लालच बैठा देखा है |
पूरा शासन भोग लिया ,
नौकरशाही की भ्रष्टाचारी सोचों ने ,
दफ्तर आना जाना सीख लिया ,
दलाली करना वकील चोर लुटेरों ने |
कानून का भय मुझे दिखाते ,,
संविधान की धाराओं मैं ,
देशभक्ति का मुझे पाठ पढ़ाते ,,
संसद को लूट सभाओं मैं |
यहाँ किस किसने जंग लढ़ी ,
मैंने खुद को खुद से लड़ते देखा ,
इस देश की आजादी की खातिर ,,
बच्चों को कोड़ों से पिटते देखा है |
कोई बस्ते के बोझ से पीड़ित ,
मैंने बस्ते को दूर से देखा है ,
मुझे मिली नहीं है आजादी ,
बस्ते में लालच बैठा देखा है |