वाराणसी
मिट्टी की लाल ईंट की जगह थर्मल पावर प्लांट की कोयले की राख (ऐश) से बनी ईंट के जरिए पर्यावरण क्रांति की दिशा में पहल हुई है। इसके लिए वाराणसी में देश का पहला ऐश पार्क खोला गया है। इस पार्क से वाराणसी समेत पूर्वांचल के जिलों में चल रहे 1300 से ज्यादा ईंट निर्माताओं को सस्ते मूल्य पर राख उपलब्ध कराई जाएगी। इससे बड़ी मात्रा में बेशकीमती मिट्टी बचेगी तो परंपरागत ईंट-भट्ठों की चिमनियों से निकलने वाले विषैले धुंए से फैलने वाले प्रदूषण पर भी रोक लगेगी।
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी) की रिहंद इकाई ने बाबतपुर हाइवे के किनारे करीब एक हेक्टेयर एरिया में ऐश पार्क खोला है। यहां 30 हजार टन राख का भंडारण करने की क्षमता है। इस पार्क को सड़क और रेल मार्ग, दोनों से जोड़ा जाएगा। 20 हजार टन राख रेलमार्ग से तो 10 हजार टन सड़क मार्ग से यहां पहुंचेगी। फिलहाल सड़क मार्ग से राख का भंडारण शुरू किया गया है। जल्द ही पार्क से ईंट निर्माताओं को राख उपलब्ध कराने की तैयारी है।
ईंट बनाने की लागत होगी आधे से भी कम
वाराणसी समेत पूर्वांचल में फिलहाल राख से ईंट बनाने वाली दर्जन भर इकाइयां ही हैं। इन्हें एनटीपीसी की उत्पादन इकाई रिहंद, सिंगरौली आदि इलाकों से सीधे राख मंगाने पर ढुलाई के लिए काफी खर्च करना पड़ता है। इसके चलते राख निर्मित ईंटों की लागत अधिक पड़ती है। ऐश पार्क के संचालन से राख की ईंटों के निर्माण की लागत आधी से भी कम हो जाएगी। पार्क से राख की 40 किलो की बोरी 20 रुपये में मिलेगी जबकि वर्तमान में ईंट निर्माताओं को इसके लिए 65 रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं।
उपजाऊ मिट्टी भी बच सकेगी
एक ईंट भट्ठा दो से तीन साल चलाने के लिए करीब पांच बीघे जमीन की औसत चार फीट मिट्टी प्रयोग में लाई जाती है। वाराणसी को ही लें तो यहां करीब चार सौ भट्ठे चल रहे हैं। पूरे पूर्वांचल में भट्ठों की संख्या 1,300 से ज्यादा है। ऐसे में राख से ईंट बनाने को बढ़ावा मिलने पर बड़ी मात्रा में खेती की बेशकीमती मिट्टी बचाई जा सकेगी।
'फायदे के साथ-साथ नुकसान भी है'
ईंट निर्माता परिषद के अध्यक्ष कमलाकांत पांडेय की मानें तो मिट्टी की जगह राख से ईंट बनाने के कई फायदे हैं तो नुकसान भी है। मिट्टी की ईंट की पकाई को देख यह पता चल जाता है कि अव्वल है या दोयम दर्जे की लेकिन राख से बनी ईंट में ऐसा नहीं हो पाएगा। कारण राख में सीमेंट मिलाकर ईंट बनाई जाती है। कितनी मात्रा में सीमेंट मिलाई गई, इसका पता लैब की जांच से ही हो सकेगा। ऐसे में सैंपल में सीमेंट की मात्रा ज्यादा और सप्लाई में मात्रा कम का खेल आम आदमी की पकड़ से बाहर होगा।
ओवर राइट समिति को दिए सुझाव
यूपी में पर्यावरण समस्या के समाधान के लिए न्यायमूर्ति राजेश कुमार की अध्यक्षता में गठित ओवर साइट समिति को ईंट निर्माता परिषद ने कई सुझाव दिए हैं। इसमें प्रमुख यह है कि निर्माताओं को राख की ईंट बनाने को प्रोत्साहित करने के लिए विदेशों से अच्छे किस्म की महंगी मशीनें मंगाने में सरकार मदद करे। राख से बनी ईंट को जीएसटी से मुक्त किया जाए और सरकारी निर्माण में इसका प्रयोग अनिवार्य किया जाए। गांव-गांव में यह प्रचार-प्रसार भी कराया जाए कि राख से बनी ईंट हानिकारक नहीं है।
खतरा बढ़ रहा
एक मेगावाट बिजली बनाने के लिए करीब 15 टन कोयले की जरूरत पड़ती है और बिजली बनने के बाद औसतन पांच टन राख निकलती है। एनटीपीसी की सबसे बड़ी उत्पादन इकाई रिहंद को ही लें तो 3260 मेगावाट बिजली उत्पादन होने से 16 हजार टन राख प्रतिदिन निकलती है। बड़ी मात्रा में राख के भंडारण की समस्या के साथ ही इससे आसपास के बड़े इलाके में प्रदूषण तेजी से फैल रहा है। पिछले ही महीने ऐश डैम टूटने से लाखों मीट्रिक टन राख रिहंद जलाशय में जाने से जल दूषित हो गया। स्थिति यह है कि रिहंद के किनारे के गांवों के कुओं से भी राख मिश्रित पानी ही निकल रहा है। ईंट बनाने में बड़ी मात्रा में राख की खपत होने से सोनांचल के लोगों को थोड़ी राहत मिल सकती है।