रचनाकार-राज कुमार तिवारी (महोली -सीतापुर )
कश्मीरी जो पण्डित भाई,
भोग रहे भारी कठिनाई।
पास - पड़ोसी जो थे उनके;
वह तो निकले सभी कसाई।।
कश्यप ऋषि की वह धरती थी,
प्रकृति जहाँ क्रीड़ा करती थी।
मनभावन सुगन्ध केसर की;
उन्मुक्त हुई सी फिरती थी।।
शेरों वाली वैष्णो माता,
अमरनाथ भोले जग त्राता।
समय भयानक ऐसा आया;
कठिन हुआ फिर इनसे नाता।।
नाचा अधर्म होकर नंगा,
लूट पाट हिंसा नित दंगा।
बारूदी दुर्गन्धें फैलीं;
रोज - रोज फिर जला तिरंगा।।
दुश्मन ने दुष्चक्र चलाए,
जिन्दा बाल-अबोध जलाए।
अस्मत लूटी अबलाओं की;
निर्दोषों के खून बहाए।।
धन सम्पत्ति मान को छीना,
हर पल कठिन हुआ फिर जीना।
सदा गले से जिसे लगाया;
वही कर गया छलनी सीना।।
तनिक दया का भाव न आया,
भीषण अति उत्पात मचाया।
जो बहना कहती थी भैया;
बलात्कार कर गला दबाया।।
थे असहाय असीम अभागे,
मदद न कोई पीछे आगे।
चीख पुकार सुनी न किसी ने;
पीड़ित दुखित प्राण ले भागे।।
गुजर करें वह अब राहों में,
फुटपाथी - तम्बू - गाहों में।
कहते अपनी करुण कहानी;
मौन सुलगती सी आहों में।।
दोष विशेष नहीं था इनका,
साथ दिया मादरे - वतन का।
अपराध यही यह हिन्दू थे;
अधिकार नहीं था जीवन का।।
मौन रहे मानवाधिकारी,
धर्म निरपेक्ष शान्ति - पुजारी।
अब तक पीड़ित अपने भाई;
सहते लपट - शीत भयकारी।।
बच्चे इनके रहते भूखे,
खाली पेट और तन सूखे।
घी - दूध - फल - मेवा कहें क्या;
मिलें नहीं अब टुकड़े रूखे।।
सरकारें आती और जातीं,
आश्वासन देकर बहलातीं।
दीन दुखी भाई की पीड़ा;
हृदय सिन्धु में ज्वार उठातीं।।
अब ऐसा अभियान चलाएं,
जीने का अधिकार दिलाएं।
दीन - हीन जनों को रक्षण दे;
उनको उनके घर पहुंचाएं।।
सब समान जन परिभाषा की,
ज्योति जगी है अब आशा की।
बेबस - पीड़ित - दुखी जनों के;
पुनर्वास की अभिलाषा की।।
अजेय भारत की सेना है,
इतिहास नया लिख देना है।
भाव नहीं रखना बदले का;
पर अधिकारों को लेना है।।